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प्रायश्चित एक अनुभव
एक बात रखना याद
ना करो शॅमा की फरियाद,
वे तो केवल शब्दो का खेल है
जिसमे ना होता दिलो का मेल है,
क्योंकि कोई कभी कुछ नही भूलता
ये एक ऐसा तराज़ू है जिसमे इंसान हर पल है झूलता,
फिर मौका मिलने पर मन मे भरी कड़वाहट संग..
अगला पिछला सब कबूलता,
इसलिए शॅमा ही क्यों माँगो...कुछ माँगना ही है तो
सद्बुद्धि और शक्ति माँगो
जिसके संग व्यवहार को बांधो,
स्वयं ही स्वयं की भूल को तराशो और करो प्रायश्चित
केवल ऐसे ही शांत कर सकते है हम हतोत्साहित चित,
किसी के फैसले का क्यों करें इंतेज़ार
अपने मन की आवाज़ की सुनो पुकार,
फिर लो ऐसा संकल्प
भूल ना दोहराएँ कभी,
अपने आचरण के बलबूते पर
फिर जगह बनपाएँ वहीं,
क्योंकि सपने पूरे हो ना हो
प्रायश्चित नही रहना चाहिए अधूरा,
ताकि लोग तुम्हारी याद मे कह सके
श्वेत था इसका मन
समझा हमने भूरा ..|