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महकती है खुशबू उनके पैमाने से
वो मुस्कुराते हैं हम पर
जब गुज़रते हैं हम उनके शामयने से,
गौर तो वो फ़ार्मा ते हैं हम पर
पर जाने क्यों डरते हैं हमारी महोब्बत को आज़माने से
हमने तो इकरार कर दिया था बीच मैखने में
शायद दर गई वों उस वक़्त ज़माने से,
हमने तो लिख दिया , तकदीर में हमारी उनका नाम
अब उम्र भी काट जाए तो गम नही
उनको ...............हमे अपना बनाने में,
उनके इनकार में इकरार की तस्वीर में , हम खुद को देख चुकें हैं
इसलिए लुफ्ट उठा रहीं हैं वो हमे सताने में,
आशिक की आशिकी कभी छुपी नही छुपाने से
जानती हैं वो
तभी तो फ़ुर्सत नही है उन्हें इतरने से,
बाहों में भर लेंगी
कह गई थी फ़िज़ाएं हमे बहाने से
पत्थर के महल को छोड़ कर आएँगी वो एक दिन
हमारी महोब्बत से भरे ग़रीब खाने में...............